एक ख़त में गुम थे कई जज़्बात,
तुम्हें भेज रहा हूँ |
तुम्हारी यादों के कुछ नगीने ,
तुम्हें भेज रहा हूँ ।
सर्द हवाओं की वो अंगड़ाइयाँ
कही दफ़्न न हो जाए
वो हर्फ़-ए-जवानी,
तुम्हें भेज रहा हूँ ।
बादलों की ये उमड़ जो यहाँ है,
वहाँ भी तो होंगी
चांदनी रातों को जलानेवाली ये चिंगारी,
तुम्हें भेज रहा हूँ ।
वक़्त के हालातों से घिस गयी है ये रूह,
इस बेजान सी जान को,
तुम्हें भेज रहा हूँ ।
न शान-ओ-शौक़त का इरादा था,
न ऐसे सोहरत से कोई वास्ता है,
बड़ी खूबसूरती से संभाला है जिसे,
तेरी यादों की वो दौलत,
तुम्हें भेज रहा हूँ ।।