उन तस्वीरों में कुछ रंग शायद बाक़ी-सा है, दिलों पर सिरों का बोझ भी तनिक भाड़ी-सा है, साँस शब्दों के उलझनों से आज़ाद कहाँ है, गलियों में कोई मिलनसार कहाँ है,
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क़िस्मत के तराने
कितने दूर है, न जाने कहाँ है, मेरी क़िस्मत के तराने, किस गफ़लत में गुम है । न कोई आस, न उम्मीद में है, वो दूर कहीं ख़ुद ख़ाक में गुम है । एक प्यास जो इधर लिए बैठा हूँ, जिस तड़प में मन हिरण बन फिरता है । क्यूँ रात भी… Continue reading क़िस्मत के तराने
A Masterpiece
अब कहाँ विकट अँधेरे में
Hiraeth
She dies, to grope the time, for her beauty and infatuated life. She wants back, her little lilies, Petrichor, her small legs, and the buzzing noises, of flies and butterflies, the chirping birds, and the howling lives. she sits on her chair, for a couple of hours, an old flesh, with dusky clothes, a state… Continue reading Hiraeth
सोच
एक सोच क़हर है ढाने को, एक सोच है जीवन पाने को, लड़ना हर बात पर सोच है, एक सोच है प्यार फैलाने को । पत्थर की मूरत सोच है, मूरत, एक पत्थर, सोच । है सोच के अब तू हार गया, एक सोच है हारा पाने को ।। दिन का होना एक सोच है,… Continue reading सोच